वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है। ये सब बड़े आश्चर्य की बात हैं ! वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है। ये सब बड़े आश्चर्य की बात हैं !
रूप उसका है सबसे निराला, अप्रम पार है उसका हर एक लीला। रूप उसका है सबसे निराला, अप्रम पार है उसका हर एक लीला।
चराचर जगत के श्रीनाथ हैं देवाधिदेव हरिहर। चराचर जगत के श्रीनाथ हैं देवाधिदेव हरिहर।
जय हो श्री जगन्नाथ की , जय हो पुरी वासियों की। जय हो श्री जगन्नाथ की , जय हो पुरी वासियों की।
कहीं ना होके भी वह हर जगह है होता। कहीं ना होके भी वह हर जगह है होता।
मेरी धड़कन रोम रोम साँसों पर जिसका कर्ज़ा है भगवान उसे कैसे लिख दूँ , भगवान से ऊँचा दर्ज़ा है मेरी धड़कन रोम रोम साँसों पर जिसका कर्ज़ा है भगवान उसे कैसे लिख दूँ , भगवान से ऊँच...